खेती किसानी को नई ऊंचाई देते ड्रोन, जानिए कैसे होते हैं मददगार

खेत में खड़ी फसल के किसी हिस्से में हो रही बीमारी का पता लगाना हो कीटनाशक नैनो यूरिया का छिड़काव करना हो या मिट्टी की गुणवत्ता और खेत या बाग की उपज का सटीक अनुमान लगाना हो ये सभी काम ड्रोन के जरिये आसानी से हो रहे हैं। ड्रोन तकनीक का खेती में बढ़ता अनुप्रयोग नमो ड्रोन दीदी जैसी योजनाएं कृषि लागतों में कमी और उपज में बढ़ोतरी करता है।

दूसरा, ड्रोन के जरिये सर्वेक्षण कर उपज का सटीक अनुमान लगाना संभव हो रहा है, जैसे संतरे या आम में कितनी पैदावार हो सकती है, इसका सही-सही अनुमान लगा सकते हैं। बगीचे में कितने पेड़ हैं या फसल की बुआई के बाद कितने पौधे सही उगे हैं, यह भी जान सकते हैं। मान लें खेत में 10 सेमी. के गैप पर पौधे रोपते हैं तो प्लांट का कितना जर्मिनेशन हुआ, यह ड्रोन सर्वे से जान सकते हैं और दोबारा खाली स्थान पर पौधे रोप सकते हैं। इस तरह की सुविधाओं के आने से खेती के छोटे रकबे में भी अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।

लागत और मजदूरी में कमी

स्प्रे की बात करें तो इससे कम समय में अधिक खेत को कवर किया जा सकता है। अब नैनो यूरिया का स्प्रे शुरू हो गया है, इससे लेबर और लागत में कमी आती है। जिन कार्यों के लिए छह-सात घंटे लगते हैं उसे ड्रोन से 30-35 मिनट में पूरा कर सकते हैं। ड्रोन के इस्तेमाल से लेबर में 70-80 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। सीआइएई की तरफ से किसानों को जागरूक किया जा रहा है। हाल में 250 हेक्टेयर खेतों में जाकर ड्रोन का डेमो दिया गया है। पूरे देश में इससे अनेक संबंधित प्रोजेक्ट चल रहे हैं। ड्रोन सिस्टम की कार्यप्रणाली के बारे में किसानों को जागरूक किया जा रहा है।

ड्रोन संचालन के नियमों का निर्धारण

आइसीएआर की तरफ ड्रोन संचालन के लिए प्रोटोकाल तैयार किया जा रहा है, जैसे ड्रोन कितनी ऊंचाई पर और अलग-अलग फसलों के लिए किस गति पर उड़ाना चाहिए। बहुत अधिक स्पीड होने पर ड्राप पौधों तक सही से नहीं पहुंचता या कम स्पीड पर इसकी अधिक मात्रा हो सकती है। इसी तरह ड्रोन की ऊंचाई का भी ध्यान रखना होता है। नीचे उड़ाने पर फूल और पत्ते के टूटने का डर रहता है। ऐसे अनेक अध्ययन चल रहे हैं। अलग-अलग फसलों के लिए विभिन्न संस्थानों में प्रोटोकाल विकसित किए जा रहे हैं।

यूरिया का छिड़काव

स्प्रे के बाद अब यूरिया ब्राडकास्ट (ग्रेनुलर छिड़काव) किया जा रहा है। अभी एक व्यक्ति को एक बोरी यूरिया का छिड़काव करने में काफी समय और मेहनत लगती है। वहीं ड्रोन से एक बोरी यूरिया का कम समय में छिड़काव संभव है। ड्रोन से 10 मिनट में एक एकड़ एरिया को कवर किया जा सकता है। कहीं-कहीं बीज की ब्राडकास्टिंग कर बुआई की जा रही है। आगे नई तकनीक विकसित हो रही है, जिससे फसलों की पंक्तिबद्ध बुआई भी संभव हो सकेगी। भारत में यह काम अभी शुरुआती चरण में है।

कृषि में क्रांतिकारी बदलाव है ड्रोन का प्रयोग

ड्रोन डेस्टिनेशन के सीईओ चिराग शर्मा ने बताया कि ड्रोन तकनीक का कृषि समेत अनेकानेक क्षेत्रों में प्रयोग बढ़ रहा है। 4G के बाद अब 5G कनेक्टिविटी से इसकी क्षमता में सुधार होगा। तकनीक के विकास और बेहतर प्रशिक्षण से ड्रोन के गिरने की दर में भी कमी आएगी। अमेरिका समेत कुछ देशों में ड्रोन जोन बनाए गए हैं, ताकि किसी तरह के व्यवधान से बचा जा सके। इसमें आटोमेशन के माध्यम से ड्रोन के प्रयोग को सुरक्षित और बेहतर बनाया जा रहा है।

बढ़ रही है सिविल ड्रोन की उपयोगिता

सर्वे के लिए बी ड्रोन का प्रयोग किया जाता है। खेती के साथ-साथ किसी भी परियोजना की निगरानी ड्रोन से संभव है। इसके सेंसर से फसल की एमआरआइ हो जाती है। मिट्टी की गुणवत्ता और खेत में पौधों की स्थिति को जानना अब आसान हो गया है। भारत में सिविल ड्रोन की उपयोगिता में चार बातें महत्वपूर्ण है- सर्वे, कृषि, लाजिस्टिक और निगरानी।

नई तकनीकों पर जोर

आगे बियांड विजुअल रेंज के लिए तकनीक और नीतियां तैयार की जा रही हैं। आसान भाषा में समझें जैसे जहाजों की निगरानी के लिए एटीसी होते हैं, उसी तरह ड्रोन का एटीसी बन रहा है। इससे सिग्नल और कम्युनिकेशन की व्यवस्था में सुधार होगा। भारत में ड्रोन इंडस्ट्री का विस्तार होना अभी शुरू हुआ है। अगले पांच वर्षों में ड्रोन की लोकप्रियता नई ऊंचाईयों पर होगी। यह ऐसी तकनीक है जिसमें आत्मनिर्भर बनना ही होगा। इसके लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता। सर्वे और स्प्रे आदि के पायलट देश में ही तैयार होंगे, तो इससे नए अवसर भी तैयार होंगे। वर्ष 2030 तक ड्रोन इंडस्ट्री में 10 लाख प्रत्यक्ष रोजगार के अवसर का अनुमान है।

हर श्रेणी के किसान के लिए उपयोगी है ड्रोन

मारुत ड्रोन सहसंस्थापक एवं सीईओ प्रेम कुमार ने जानकारी दी है कि ट्रैक्टर आने के बाद जिस तरह खेती सहज हुई और उत्पादन में बेहिसाब वृद्धि हुई, उसी तरह ड्रोन के प्रयोग से भी बड़ा बदलाव आना शुरू हो गया है। जैसे आज अलग-अलग कार्यों के लिए ट्रैक्टर का प्रयोग किया जा रहा है, ठीक वैसे ही ड्रोन का भी अलग-अलग तरह के कृषि कार्य किए प्रयोग संभव है। इसकी स्प्रेइंग सुविधा से कीटनाशकों, यूरिया का छिड़काव हो रहा है। बड़े पैमानों पर आसानी से यूरिया, बीज या ग्रेन्युलर का छिड़काव किया जा सकता है।

ड्रोन को एक माध्यम के रूप में देखें तो इसके नीचे लगे टैंक को बदलकर अलग अलग कार्यों के लिए प्रयोग कर सकते हैं। स्प्रेइंग, ग्रेन्युलर स्प्रेडिंग, फ्यूमिकेशन, बुआई, पालिनेशन, क्राप मानिटरिंग में ड्रोन का हम प्रयोग कर चुके हैं। खेतों और बगीचों में बुआई और पौधों की निगरानी को अब आटोमेट किया जा सकता है। एक ही ड्रोन से इस तरह के कई सारे काम किए जा सकते हैं। एक दिन में 30 एकड़ तक खेतों में स्प्रे किया जा सकता है।

फिलहाल, कई सारे किसान 20-22 एकड़ तक ड्रोन से स्प्रे करने लगे हैं। प्रति एकड़ 10 लीटर तक मिक्स नैनो यूरिया का छिड़काव कर रहे हैं। अभी साल भर में 90 से 150 दिनों तक स्पेइंग से जुड़े कार्य होते हैं। किसान जैसे ट्रैक्टर का पूरे साल प्रयोग करते हैं, उसी तरह ड्रोन के प्रयोग का भी दायरा बढ़ाया जा सकता है। स्प्रेइंग गतिविधियों को भी 250 दिनों तक बढ़ा सकते हैं। आने वाले दिनों में इसके लिए कई अन्य सारे प्रयोग होते नजर आएंगे।

कई सारे शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों की मदद से किसानों को ड्रोन के प्रयोग के प्रति जागरूक किया जा रहा है। तमिल, कन्नड़, हिंदी, मराठी जैसी स्थानीय भाषाओं में भी किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। किसानों को 10-15 दिनों में ड्रोन संचालन के तौर-तरीकों के बारे में बता दिया जाता है।

अक्सर एक वर्ष में 10 लाख ट्रैक्टर की बिक्री होती है। बीते 15-20 वर्षों में ट्रैक्टर की मांग में वृद्धि हुई, वहीं ड्रोन की मांग अगले पांच वर्षों में ही एक नए ऊंचाई को छूने वाली है। अगले पांच वर्ष में 3.65 लाख ड्रोन की मांग भारत में पहुंचने का अनुमान है। यह बड़े, मध्यम और सीमांत किसानों के लिए उपयोगी साबित होने जा रहा है। अगर एक प्रतिशत भी बड़े किसान और चार प्रतिशत मध्यम किसान ड्रोन का प्रयोग करें तो भी ड्रोन की मांग 18 लाख से अधिक हो जाएगी। अभी नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत 15 हजार ड्रोन दिए जा रहे हैं। इसी तरह लगभग हर राज्य में ड्रोन के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्य शुरू हो गए हैं।