डॉलर के मुकाबले रुपया 77.69 के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर

नई दिल्ली,  मंगलवार को शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होकर 77.69 के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया। गुरुवार को यह 77.50 के पिछले रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था। हालांकि जहां इससे महंगाई को थोड़ी हवा मिली, वहीं यह धारणा भी बनी कि इससे निर्यातकों को फायदा होगा। घरेलू कच्चे माल के दम पर मैन्यूफैक्चरिंग हब बने चीन जैसे निर्यात आधारित देशों को जरूर डालर के मुकाबले अपनी करंसी में गिरावट से फायदा हो सकता है, लेकिन भारत के संदर्भ में बमुश्किल 20 प्रतिशत निर्यातकों के लिए यह स्थिति फायदेमंद है।

पिछले सप्ताह रुपये के मूल्य में इस गिरावट के बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि आरबीआइ रुपए के समर्थन में कोई कदम उठाएगा, ताकि भारत को अधिक नुकसान न हो। हालांकि आरबीआइ की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया है। विदेश व्यापार विशेषज्ञों के मुताबिक भारत का 60 प्रतिशत निर्यात डालर में और 40 फीसद निर्यात यूरो और पौंड में होता है। अभी डालर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट आई है, लेकिन यूरो और पौंड के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है। ऐसे में जो निर्यातक यूरो व पौंड में निर्यात करते हैं, गिरावट का लाभ नहीं मिलेगा।

फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गनाइजेशंस (फियो) के सीईओ एवं महानिदेशक अजय सहाय ने बताया कि डालर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट का लाभ 20-25 फीसद निर्यातकों को ही मिल पाता है। इसकी वजह है कि काफी अधिक संख्या में निर्यातक डालर की हेजिंग करते हैं और उन्हें अचानक होने वाली गिरावट का लाभ नहीं मिलता है। सहाय ने बताया कि कई सेक्टर में निर्यात होने वाली वस्तुओं को तैयार करने के लिए कच्चे माल का आयात किया जाता है।

पेट्रोलियम पदार्थ, जेम्स व ज्वैलरी जैसे कई प्रमुख सेक्टर के निर्यात से जुड़े कच्चे माल का आयात किया जाता है, इसलिए इन सेक्टर में डालर के मुकाबले रुपये का मूल्य कम होने से कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता है। इन सबके बाद लगभग 20-25 प्रतिशत ही निर्यात ऐसे बचते हैं जिनसे जुड़े आइटम पूरी तरह से घरेलू कच्चे माल से बनते हैं और इनका निर्यात कारोबार पूरी तरह डालर में होता है।निर्यातकों ने कहा कि ऐसा भी नहीं है कि रुपये के मूल्य में लगातार गिरावट ही होती है।

जेम्स व ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के नार्दर्न इंडिया के चेयरमैन अशोक सेठ ने कहा कि रुपये में मजबूती की स्थिति में उन्हें घाटा भी होता है। उन्होंने बताया कि वह यूरो में कारोबार करते हैं और अभी रुपये के मुकाबले यूरो में कमजोरी से उन्हें कम रकम मिलेगी। भारत जैसे देश के लिए रुपये में गिरावट इसलिए भी फायदेमंद नहीं है क्योंकि भारत निर्यात से अधिक वस्तुओं का आयात करता है। अप्रैल में ही भारत ने निर्यात के मुकाबले 20 अरब डालर अधिक का आयात किया। वित्त वर्ष 2021-22 में भी भारत ने 419 अरब डालर का निर्यात किया और 600 अरब डालर से अधिक का आयात किया। दूसरी ओर, चीन ने वैश्विक बाजार में खुद को और स्पर्धी बनाने के लिए युआन को डालर के मुकाबले जानबूझकर थोड़ा कमजोर किया है।