नई दिल्ली, यानि खेती-किसानी ऐसा सेक्टर है, जो आज-कल के Professionals को काफी लुभाता है। हमारे आसपास कई ऐसी मिसालें मिलती हैं कि इंजीनियर, मैनेजमेंट धुरंधरों ने लाखों रुपए का पैकेज छोड़कर खेती-किसानी शुरू कर दी और कम समय में अच्छा मुनाफा पैदा कर रहे हैं। इस सेक्टर में छोटी पूंजी से भी काम शुरू किया जा सकता है। अच्छी बात यह है कि यहां होने वाली इनकम पर भी Income Tax काफी कम है। कुछ ही मामलों में Agriculture Income पर टैक्स (Tax on Agricultural Income) लगता है। अगर आप भी इस सेक्टर में हाथ आजमाना चाहते हैं तो पहले Agriculture Income पर Taxation से जुड़ी कुछ बारीकी समझ लेना अच्छा होगा।
Anand Rathi Private Wealth के VP चिंतक शाह के मुताबिक Income Tax Act, 1961 के तहत एग्रीकल्चर इनकम को टैक्स एग्जेमट रखा गया है। हालांकि इसमें कुछ क्लॉज हैं, जहां टैक्स लगता है।
क्या है एग्रीकल्चर इनकम?
भारत में किसी खेत से किराए या दूसरे रूप में होने वाली इनकम। लेकिन इसका इस्तेमाल कृषि कार्य के लिए हुआ हो।
कृषि कार्य का मतलब है खेती-किसानी। खेती कर फसल उगाना।
खेती की उपज यानि फसल को बेचने से होने वाली इनकम।
खेत पर बनी किसी इमारत से होने वाली आय। अगर उसे खेती-किसानी के काम के लिए किराए पर दिया गया हो।
खेत बेचने पर टैक्स
खेती के लिए इस्तेमाल होने वाली जमीन कैपिटल एसेट का हिस्सा नहीं हो सकती। अगर कोई किसान खेत बेचता है तो उससे होने वाली आय Capital Gain में नहीं गिनी जाती। उस पर टैक्स नहीं लगता।
अगर कोई जमीन 10 हजार वाली आबादी की Municipality या Cantonment में पड़ती है तो वह खेत नहीं कहलाएगी।
इसके अलावा भी कई क्लॉज हैं, जिनमें साफ किया गया है कि खेत की परिभाषा क्या है।
जमीन बेचने पर टैक्स
अगर कोई जमीन बेची जाती है तो उस पर Income tax कैपिटल गेन मानते हुए टैक्स लगाता है। यह IT Act की धारा 54B के तहत है।
क्या है Section 54B
चिंतक शाह के मुताबिक Section 54B उन टैक्सपेयर को एग्रीकल्चर लैंड बेचने से राहत देता है जो गांवों में नहीं पड़ता बल्कि शहर में स्थित है। इस मामले में टैक्सपेयर को एक जमीन बेचकर उसकी मिलने वाली रकम से दूसरी वैसी ही जमीन खरीदनी होती है, तभी टैक्स से छूट मिलेगी। हालांकि इसमें भी कुछ शर्तें हैं।